रात्रि क्या है? तुम्हें क्या लगता है, क्या केवल सूर्य का अस्त होने ही रात्रि है..? नहीं! किसी चूर-चूर हो चुके स्वप्न के लिए रात्रि वरदान नहीं, मन के लिए विश्राम नहीं, अपितु अभिशाप की भांति है। जो निगल जाती है, भीतर कहीं प्रकाश को, और फैला देती है समुची दिशा में घोर अंधकार। रात्रि केवल समय का एक चक्र नहीं अपितु भयभीत करने वाला वह चक्र है जो हृदय की गति को बढ़ा देता है। एक ऐसा अंधकार जो ना केवल बाहरी अपितु अन्तर्मन को भी सर्पदंश की भांति विषैले अंधकार से भर देता है। जिनका हृदय खण्ड-खण्ड में विभाजित हो, जिनकी मनःस्थिति सही ना हो, उनके लिए यह केवल रात्रि नहीं होती। एक ऐसा भारी समय होता है, जिसका प्रत्येक क्षण घड़ी के कांटे के समान चुभता है, जो अनेक प्रयत्नों के बाद भी केवल कष्टकारी ही प्रतीत होता है। रात्रि केवल रात्रि नहीं होती, अपितु ना काट सकने वाली उस धातु के समान है, जो तीव्र ज्वाला में रक्त की भाँति लाल होकर केवल और केवल सुख का दहन करती है। एक ऐसी अग्नि के समान है जो असीमित तीव्रता से शरीर का विनाश करती है। रात्रि मित्र नहीं शत्रु है। यह केवल वार करती है उस स्थान पर और उस समय जब आप असहाय होते है। जब आप दुःखी होते हैं। यह केवल अपने अंधकार को बढ़ाती है आपके कष्ट को बढ़ाने के लिए, और एक समय ऐसा भी आता है, जब आप खुद के घुटने टेक देते हैं, और हार को स्वीकार कर उन स्मृतियों में पहुँच जाते हैं जो केवल आपको पीड़ा पहुँचाती हैं। #रूपकीबातें #roopanjalisingh #emptiness रात्रि क्या है? तुम्हें क्या लगता है, क्या केवल सूर्य का अस्त होने ही रात्रि है..? नहीं! किसी चूर-चूर हो चुके स्वप्न के लिए रात्रि वरदान नहीं, मन के लिए विश्राम नहीं, अपितु अभिशाप की भांति है। जो निगल जाती है, भीतर कहीं प्रकाश को, और फैला देती है समुची दिशा में घोर अंधकार।