मैं गया था आज एक ऐसी जगह इसी बाज़ार में, जहा बिक रही थी कसी की आवरूह कौड़ियो के भाव में। मैंने पूछ लिया उनमें से खरे एक से, कि क्यू तुम उ ही नीलाम कर रही आवरूह इस खुले बाजार में, उसने हँस कर जवाब दिया कि साहब ना तन ढकने को सही कपड़े ना अन्न के दाने होते है पेट में, और आप पूछ रहे कि क्यू करती हो नीलाम अपनी आवरूह आकर इस बाज़ार में। #Stories #poem #aawrooh #umeed #Bebasi #Shayari