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हे माँ शारदे अब के बरस अनूठा कोई ज्ञान दो मैं खुद

हे माँ शारदे अब के बरस अनूठा कोई ज्ञान दो
मैं खुद की मैं से ऊपर उठूँ बस इतना वरदान दो
रीते दिलों में प्रेम भरूँ भूखे दिलों का बनूँ निवाला
हर आँख़ की नमी में रहे मेरा गिरजा और शिवाला
प्रेम कोई सँबँध नहीं सिर्फ मेरे वजूद का स्वभाव हो
कदम उस दिशा बढ़ाऊँ, जहाँ तेरे मिलन की राह हो
सारी क़ायनात सँग प्रेम ग्रँथ रचूँ एैसा मुझे मान दो
तेरा रूप बन तुझमें समाऊँ इतना मुझे अभिमान दो
बसँत पँचमी और प्रेम दिवस का अद्भुत सँगम हर रूह को निस्वार्थता की बौछार से उपजाऊ करे, जिसमें निस्वार्थ प्रेम के सुगँधित सुमन खिलें और समूचे विश्व को महका r r
हे माँ शारदे अब के बरस अनूठा कोई ज्ञान दो
मैं खुद की मैं से ऊपर उठूँ बस इतना वरदान दो
रीते दिलों में प्रेम भरूँ भूखे दिलों का बनूँ निवाला
हर आँख़ की नमी में रहे मेरा गिरजा और शिवाला
प्रेम कोई सँबँध नहीं सिर्फ मेरे वजूद का स्वभाव हो
कदम उस दिशा बढ़ाऊँ, जहाँ तेरे मिलन की राह हो
सारी क़ायनात सँग प्रेम ग्रँथ रचूँ एैसा मुझे मान दो
तेरा रूप बन तुझमें समाऊँ इतना मुझे अभिमान दो
बसँत पँचमी और प्रेम दिवस का अद्भुत सँगम हर रूह को निस्वार्थता की बौछार से उपजाऊ करे, जिसमें निस्वार्थ प्रेम के सुगँधित सुमन खिलें और समूचे विश्व को महका r r