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मरघट की चीताओं से, अश्रु भी अब सुख चुके है, रेत पे

मरघट की चीताओं से,
अश्रु भी अब सुख चुके है,
रेत पे गिरती बूंदों से,
फिर भी,
यह ठूँठे तरुओं सा जीवन,
नव बसंत की आस लिए,
तुंग हिमालय सा खड़ा है
नवाङ्कुरो की अभिलाष किए #ख़्वाबमेरे #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi #yqhindi #जीवन #प्ररेणा #कविता
मरघट की चीताओं से,
अश्रु भी अब सुख चुके है,
रेत पे गिरती बूंदों से,
फिर भी,
यह ठूँठे तरुओं सा जीवन,
नव बसंत की आस लिए,
तुंग हिमालय सा खड़ा है
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