ये दिखावें का अपनापन ये झूठा प्यार अब अच्छा नही लगता, पानी के माफ़िक साफ है सब शब्द ऐतबार अच्छा नही लगता। वो लहज़ा वो यादें वो फ़ोन का बजना परेशान करता है मुझें, जो टूटा हो इंसान तब इनकार को इक़रार अच्छा नही लगता। ख़्वाबों के पंख कट गए उम्मीदें थकी थकी सी मालूम होती है, होता है मनभेद तो ये रोज़ रोज़ का तक़रार अच्छा नही लगता। जब पत्थर दिल हो हमसफ़र तो किससे कही जाए दिल की बातें, सांस चल रही है मग़र हर बार प्यार को प्यार अच्छा नही लगता। कितनी दफ़ा गिरकर अपने पैरों पर चलना सीख पाया हूँ अंजान, मत आओ ज़हन में अब मेरे गिरना बार बार अच्छा नही लगता। पत्थर दिल हमसफ़र(ग़ज़ल) ये दिखावें का अपनापन ये झूठा प्यार अब अच्छा नही लगता, पानी के माफ़िक साफ है सब शब्द ऐतबार अच्छा नही लगता। वो लहज़ा वो यादें वो फ़ोन का बजना परेशान करता है मुझें, जो टूटा हो इंसान तब इनकार को इक़रार अच्छा नही लगता।