कभी कभी बंद दरवाजों के कोने से भी सरक कर टीस चली आती है और किसी अजगर की तरह लपेट कर मुझको निचोड़ देती है हर बार मैंने तुमको खुद से लहू सा रिस्ते देखा है ना जाने तुंम कितनी गहरी पसीज़ गई हो मुझ में कि दम निकल जाता है मगर तुंम नहीं निकलती अब खमोशी को कहने दो@ दम निकलता है ©Mo k sh K an #poem #Poetry #story #mokshkan #अब_ख़ामोशी_को_कहने_दो