पल्लव की डायरी मन की गंगा,मैली हो गयी पवित्र भावो की इसमें डुबकी लगाये संक्रांती ग्रहों, सूर्य शनि की है अपने मनोबल से सभी विकारों से मुक्ती पाये जोड़े ना धर्मो को अर्थ कामनाओ से परस्पर जीने की बुद्धि और विवेक जगाये उड़े पतंगे उमंगों की डोर सबकी थामके उत्साह की ज्योति जलाये मानवता को निभाना ही सार्थकता कुम्भ की है संख्याबल बढ़ाकर किसी को ना चिराये प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #makarsankranti उड़े पतंगे उमंगों की