ये लज्ज़त भरा शाम का किनारा गीला मंजर और मुस्कुराता मुख तुम्हारा तुम्हारी निस्बत में दिन पलकें झुका रहा है ओट में अपनी मुझे हमेशा को सुला रहा है मगर सोने से पहले इक वादा ले लूं आखिरी दफा क्या हाथ तुम्हारा छू लूं ? फिर जाने किस सदी के सवेरे मुलाकात हो अपनी क्या पता दोनों सामने बैठें रहे फिर भी बात न हो अपनी फिर क्यूं न तुम्हारी इक मुस्कुराहट अपने साथ ले जाऊं काल के जिस भी हिस्से में रहूं वहीं उसी संग ईद-दिवाली मनाऊ मुझे पता है तुम्हारे संग जैसा जीवन मिलेगा न मुझे दोबारा ये लज्ज़त भरा शाम का किनारा छूटता मेरे हाथ से हाथ तुम्हारा गीला ये मंज़र और मुस्कुराता मुख तुम्हारा ! For easy reading 👇👇 ये लज्ज़त भरा शाम का किनारा गीला मंजर और मुस्कुराता मुख तुम्हारा तुम्हारी निस्बत में दिन पलकें झुका रहा है