हाँ, मैं देखता हूँ - तुझे घेरती थीं, मेरी पाटें वो हो चुकीं अदृश्य! कि तुम नदी नहीं, अब सागर-सा प्रतीत होते हो - शक्तिवान, गंभीर, और .........शांत। पर, अन्तर्निहित तूफानों की विकरालता समाए क्या तू, सच ही शान्त है? - संतुष्ट और समाधिस्थ! यद्यपि, यूं नहीं होता .... #प्रति-प्रकृति! @manas_pratyay #Silent #प्रति_प्रकृति © Ratan Kumar