कोई ठहरा नहीं रहता... बस लगता है ठहरा है जिस्म ना ही ठहरी उम्र है, ना ही ठहरी मौत, ना ही साँसे, ना ही धमनियों में बहता हुआ रक्त, ना ऋतुएँ ठहरी, मन मनचल, ना कुछ अविचल, स्पंदित हृदय, रिश्तों का जाल, विपत्ति विकराल, ठहरे कोई तो ठहरे कैसे, समय का जो चक्र है, टूटा हुआ या वक्र है!? ना मोह है, ना बंधन कोई, बस मृग तृष्णा का शोर है... ©Vivek Sharma Bhardwaj #Alive #Man #Rishta #jaal