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मैं बेटी हूं मैं ही नारी हूं बेटी कोमल है कमजोर नह

 मैं बेटी हूं मैं ही नारी हूं बेटी कोमल है कमजोर नहीं वह भावुक है भोग नहीं वह मौन मूक के नहीं वह सौम्या है शून्य नहीं वह गहन है गर्द नहीं वह समर्पण है दर्प नहीं वह सदाचार है लाचार नहीं वह निश्चल है वह वाचाल नहीं व स्वाभिमानी है मनमानी नहीं वह संस्कारी है बेचारी नहीं वह मर्यादित है परितंत्र नहीं वह सृजन है व शनि यंत्र नहीं वह अनुरागी है अबोध नहीं वह बेटी है बोझ नहीं है आज के परिवेश में सबको मां चाहिए बहन चाहिए पत्नी चाहिए पर बेटी ना चाहिए यह कहां का संस्कारों कहां का उल्लेख है जब बेटी ही ना रहेंगी  तो मां कहां से मिलेगी बहन कहां से मिलेगी बीबी कहां से मिलेगी जरा सोच कर देखिए तो बेटी से ही संसार का सृजन होता है और बेटी को ही गरबे में मारा जाता है ऐसा क्यों जय श्री कृष्णा जय माता दी
 मैं बेटी हूं मैं ही नारी हूं बेटी कोमल है कमजोर नहीं वह भावुक है भोग नहीं वह मौन मूक के नहीं वह सौम्या है शून्य नहीं वह गहन है गर्द नहीं वह समर्पण है दर्प नहीं वह सदाचार है लाचार नहीं वह निश्चल है वह वाचाल नहीं व स्वाभिमानी है मनमानी नहीं वह संस्कारी है बेचारी नहीं वह मर्यादित है परितंत्र नहीं वह सृजन है व शनि यंत्र नहीं वह अनुरागी है अबोध नहीं वह बेटी है बोझ नहीं है आज के परिवेश में सबको मां चाहिए बहन चाहिए पत्नी चाहिए पर बेटी ना चाहिए यह कहां का संस्कारों कहां का उल्लेख है जब बेटी ही ना रहेंगी  तो मां कहां से मिलेगी बहन कहां से मिलेगी बीबी कहां से मिलेगी जरा सोच कर देखिए तो बेटी से ही संसार का सृजन होता है और बेटी को ही गरबे में मारा जाता है ऐसा क्यों जय श्री कृष्णा जय माता दी
durgashakti1675

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