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अब सब अपने बेगाने हुए हमसर अब अपने भी सहर अनजाने

अब सब अपने बेगाने हुए हमसर 
अब अपने भी सहर अनजाने हुए 
हमसर 
अब जो खुद मुसाफिर बन गए है हम 
हम तो अपने आप से अनजाने हुए है 
हमसर।
छोड़ कर अपना शहर भला कौन सुकून से 
रहता है 
दूसरे सहर में  हम खुद ही दर बदर के 
मारे हुए हमसर ।
छूटा जो अपना गाव तो खाक कुछ अच्छा लगे 
कोई अपना मिले इस बेगाने शहर में 
तो ना अच्छा लगे ।
और अब मा के हाथो का लुकमा बहोत
याद आयेंगे 
भूख भी ना होने से मा जो  जबरन खिलाती 
थी।
ओ मा के हाथो का निवाला अब बहोत सताएंगे
और मा ने ये कह कर ,कर दिया  घर से रुखसत
की तुझको मेरी सारी दुआ लगे ।
तू जहा भी रहे सलामत रहे   
तू  हसता रहे मुस्कुराता रहे तुझे ना किसी का 
बद्दुआ लगे ।

© Hamsar husain #EveningBlush  Hiyan Chopda RAJ  Raffi Manzoor Shivam Tomar Ichu shekhawat
अब सब अपने बेगाने हुए हमसर 
अब अपने भी सहर अनजाने हुए 
हमसर 
अब जो खुद मुसाफिर बन गए है हम 
हम तो अपने आप से अनजाने हुए है 
हमसर।
छोड़ कर अपना शहर भला कौन सुकून से 
रहता है 
दूसरे सहर में  हम खुद ही दर बदर के 
मारे हुए हमसर ।
छूटा जो अपना गाव तो खाक कुछ अच्छा लगे 
कोई अपना मिले इस बेगाने शहर में 
तो ना अच्छा लगे ।
और अब मा के हाथो का लुकमा बहोत
याद आयेंगे 
भूख भी ना होने से मा जो  जबरन खिलाती 
थी।
ओ मा के हाथो का निवाला अब बहोत सताएंगे
और मा ने ये कह कर ,कर दिया  घर से रुखसत
की तुझको मेरी सारी दुआ लगे ।
तू जहा भी रहे सलामत रहे   
तू  हसता रहे मुस्कुराता रहे तुझे ना किसी का 
बद्दुआ लगे ।

© Hamsar husain #EveningBlush  Hiyan Chopda RAJ  Raffi Manzoor Shivam Tomar Ichu shekhawat