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शीर्षक–मना लो ना कुछ अनसुलझे सवालों में शाम गुजर


शीर्षक–मना लो ना

कुछ अनसुलझे सवालों में शाम गुजरी है।
रात करवटों में आंखों में नींद जगती है।।

वो पास होते  हुए भी पास नहीं होते है।
ना जाने किस बात पर अनबन रहती है।।

कभी मुड़कर चोरी से हम देखते है उन्हें।
तो कभी उनके पलटने की आहट होती है।।

कोई गिला नहीं है दिल में अपने हां मगर।
थोड़ी उनके मना लेने की जिज्ञासा रहती है।।
स्वरचित
सरिता🍂...✍🏼

©Sarita gautam
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