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किसी घने अंधेरी रात से कोने में छिप मैं बैठी थी क

किसी घने अंधेरी रात से कोने में छिप 
मैं बैठी थी कुछ खुशियां दाबे
चुपचाप बिना शोर किए
मैं खिलखिला रही थी धीरे धीरे
ना जाने किसने खबर दी 
क्या हुआ अचानक
बचते बचाते मैं रही हमेशा
फिर भी आख़िर
गमों ने ढूंढ़ लिया है मुझको

©khushboo Dhiraj Dubey
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