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जब मै बैठा रहता हूं खाली अकेले जगह पर !! धीरे से

जब मै बैठा रहता हूं 
खाली अकेले जगह पर !!

धीरे से उत्पन्न होती है 
कविता मेरे भितर से!!

फिर कागज के पन्नों पर 
शब्दो कि वर्षा होने लगती हैं !!

बजर जमी पर मानो जैसे 
बरसात होने लगती है !!

जैस खेत खलियान खिलते है 
बरसात के बुंदों से,वैसे शब्द भी 
खिलने लगते हैं स्याहि के बुंदों से!!

जैसे जैसे कविता आगे बढने
 लगती हैं  वैसे वैसे कवी का 
मन संतुष्ट होने लगता है!!

कविता को मानो नया आयाम 
प्राप्त होने लगता हैं!!

शीर्ष से कविता को नया स्वरुप 
प्राप्त होने लगता है !!

कवी कि  कलम को नयी पहचान 
मिलने लगती हैं!!

तब जाके कही एक कविता बन पाती हैं!!

©Nilesh borse
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