क्या कहूँ, चिर शून्य हूँ मैं, मौन हूँ मैं, मौन हूँ मैं | कौन आया है मेरे एकांत और सूने जीवन में, लेकर संग उमंगे -तरंगे भर गया चंचलता मेरे आकुल व शांत मन में, हा !समय का चक्र देखो, कर गया मुझको विरहणी शेष केवल सिसकियाँ हैं अब तो बस मेरे रुदन में || क्या कहूँ, चिर शून्य हूँ मैं, मौन हूँ मैं, मौन हूँ मैं || नहीं कोई अब तमन्ना, न ही कोई कल्पना, स्वयं से हुई मैं अपरचित,, कौन हूँ मैं?? कौन हूँ मैं? क्या कहूँ चिर शून्य हूँ मैं, कौन हूँ मैं? कौन हूँ मैं? हाँ मौन हूँ मैं........ #कौन हूँ मैं?? #मौन हूँ मैं