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शायद मैं जिनगी के ज़हर ले आयेंव, आज अपन क़ातिल ल घर

शायद मैं जिनगी के ज़हर ले आयेंव,
आज अपन क़ातिल ल घर ले आयेंव,
जिनगी भर खोजत रहेंव मैं इश्क़ के मंजिल,
अंजाम वो दर्द के सफ़र ले आयेंव,
खंजर हे मोर हाथ म कांधा म मय-कदा,
ले मैं इलाज बर दर्द-ए-जिगर ले आयेंव,
सनम तोर तीर नई आंव लहुट के,
ज़ख़्म भरगे रिहिस ये डाहार ले आयेंव.....।।।।

 #छत्तीसगढ़ी_ग़ज़ल #writer #jainesh_kumar

  शायद मैं #जिनगी के ज़हर ले #आयेंव,
आज #अपन #क़ातिल ल घर ले आयेंव,
शायद मैं जिनगी के ज़हर ले आयेंव,
आज अपन क़ातिल ल घर ले आयेंव,
जिनगी भर खोजत रहेंव मैं इश्क़ के मंजिल,
अंजाम वो दर्द के सफ़र ले आयेंव,
खंजर हे मोर हाथ म कांधा म मय-कदा,
ले मैं इलाज बर दर्द-ए-जिगर ले आयेंव,
सनम तोर तीर नई आंव लहुट के,
ज़ख़्म भरगे रिहिस ये डाहार ले आयेंव.....।।।।

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