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(बाल मजदूरी) 8-10 साल की इस छोटी सी उम्र ने, जिम्

(बाल मजदूरी)

8-10 साल की इस छोटी सी उम्र ने,
जिम्मेदारियों का एहसास करा दिया,, 
वो पढ-लिख कर पास होते रहे,
हमें मजबुरी के तजुर्बों ने पास करा दिया,,
वो एक वक़्त का खाना छोड़ देते हैं, 
अगले वक़्त तक की अच्छी भूख के लिए,,
हम एक वक़्त ही खा पाते हैं, 
दो वक़्तो से लगी भूख के लिए,,
इन्सान वो भी हैं और इन्सान हम भी, 
बस फर्क है तो किस्मत और मेहनत का,,
उन्हे किस्मत से बिना मेहनत किये सब मिलता है, 
और हमे मेहनत करने के लिए भी मेहनत करनी पड़ती है,,
खाना वो भी होटलों में खा लेते हैं और हम भी, 
वो पका हुआ खाते हैं और हम उनका बचा हुआ,,
वो खुशियों से जिंदगी जीते हैं, 
और हम खुशियों के लिए जिंदगी जीते हैं,,
बच्चे वो भी हैं और हम भी,
बस फर्क है तो जिंदगी जीने का,,
 #बाल_मजदूरी 
#अपनी_अपनी_किस्मत
#गरीब_के_बच्चे
(बाल मजदूरी)

8-10 साल की इस छोटी सी उम्र ने,
जिम्मेदारियों का एहसास करा दिया,, 
वो पढ-लिख कर पास होते रहे,
हमें मजबुरी के तजुर्बों ने पास करा दिया,,
वो एक वक़्त का खाना छोड़ देते हैं, 
अगले वक़्त तक की अच्छी भूख के लिए,,
हम एक वक़्त ही खा पाते हैं, 
दो वक़्तो से लगी भूख के लिए,,
इन्सान वो भी हैं और इन्सान हम भी, 
बस फर्क है तो किस्मत और मेहनत का,,
उन्हे किस्मत से बिना मेहनत किये सब मिलता है, 
और हमे मेहनत करने के लिए भी मेहनत करनी पड़ती है,,
खाना वो भी होटलों में खा लेते हैं और हम भी, 
वो पका हुआ खाते हैं और हम उनका बचा हुआ,,
वो खुशियों से जिंदगी जीते हैं, 
और हम खुशियों के लिए जिंदगी जीते हैं,,
बच्चे वो भी हैं और हम भी,
बस फर्क है तो जिंदगी जीने का,,
 #बाल_मजदूरी 
#अपनी_अपनी_किस्मत
#गरीब_के_बच्चे