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उनके इंतजार में ढलने लगी धूप अब जवानी की खड़े हैं

उनके इंतजार में ढलने लगी धूप अब जवानी की 
खड़े हैं चौराहे पर आज भी
 वह आए लेकर अपने नैनों में अश्क मेरे प्यार भरी कहानी कि
 मर गई वह मेरे लिए 
मगर मैं भी कहां जिंदा रहा 
दफनाया मैंने खुद को खुद की लाश पर मै मिट्टी डाल आया
 कौन सी कमी रह गई थी मेरे प्यार में 
जो एक बार भी उसको तरस ना आया
 हर पल खंजर से वार किया 
मैं नादान हर बार से उसके प्यार किया
 तोहफा बना लिया जख्मों का 
हर जख्म में उसका दीदार किया
 रास ना आए मुझे जमाना 
यादों में भी उसका इंतजार किया
 मैं भूल ना पाया उसे 
आज फरियाद है मेरी रब से
 जन्नत की चाहत नहीं ,
यह दिया उनकी आगोश में बुझ जाए।

©Samiksha Chouhan
  #दूरी एक मजबूरी

#दूरी एक मजबूरी #कविता

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