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"समझे नही हम" चाय की कुल्लड़ हो या शामियाने में द

"समझे नही हम"

चाय की कुल्लड़ हो या शामियाने में दिल हो किसी का अक्सर टूट जाता है क्यों, ये  समझे  नहीं हम 
पत्थर से सीने पर  नाजुक सा सिर तेरा, रखते हो बार बार क्यों , ये समझे नहीं हम
इल्जाम बेबुनियाद थे  मुझ पर और बचने के लिए हमने भी मशक्कत न की 
फैसला फिर भी आया मेरे  हक में क्यों ,ये समझे नहीं हम
इल्म होता है हमें की ये मोहब्ब्त महज मायाजाल है 
फिर भी फंस जाते है क्यों ये समझे नहीं हम 
जब बैठते हैं बस या ट्रेन में aksh अपना गांव _शहर छोड़कर
आंख में आ जाता हैं आंसू क्यों ये समझे नहीं हम 
खाली जेब थी बाप की फिर भी घुमाने ले गए मेला 
 किसी भी खिलौने के तरफ़ ऊंगली ना दिखाई क्यों ये समझे नहीं हम 
अहले महफ़िल में हर कोई लगा था सुनाने में अपने वफा के किस्से
बात हमारी हुई तो  उठकर चल दिए क्यों ये समझे नही हम
बिछड़ते वक्त तो फैसला हुआ था की हम दोनो ना होंगे किसी के 
फिर भी हम दोनो हो गए किसी के क्यों ये समझे नही हम
किताबों में मिलती है बेवफाई के हर मर्ज की दवा
फिर भी चले गए मैखाना क्यों ये समझे नही हम 
न अब मोहब्ब्त की आरज़ू है और न दोस्तों यारों की
उठ गया इन सब से मन क्यों ये समझे नही हम 
अब तो कढ़ी चावल भी खा लेते हैं सुकून से 
छूट गई आदत जायका लेने की क्यों ये समझे नही हम
बाप के पैसों से मैने देखा है करते सभी को ऐश
मगर अपनी कमाई बचाते हैं क्यों ये समझे नही हम 
 समझे नही हम 
Part १
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#aksh 
#mineforever
#minewords 
#yourquote 
#yourquotebaba
"समझे नही हम"

चाय की कुल्लड़ हो या शामियाने में दिल हो किसी का अक्सर टूट जाता है क्यों, ये  समझे  नहीं हम 
पत्थर से सीने पर  नाजुक सा सिर तेरा, रखते हो बार बार क्यों , ये समझे नहीं हम
इल्जाम बेबुनियाद थे  मुझ पर और बचने के लिए हमने भी मशक्कत न की 
फैसला फिर भी आया मेरे  हक में क्यों ,ये समझे नहीं हम
इल्म होता है हमें की ये मोहब्ब्त महज मायाजाल है 
फिर भी फंस जाते है क्यों ये समझे नहीं हम 
जब बैठते हैं बस या ट्रेन में aksh अपना गांव _शहर छोड़कर
आंख में आ जाता हैं आंसू क्यों ये समझे नहीं हम 
खाली जेब थी बाप की फिर भी घुमाने ले गए मेला 
 किसी भी खिलौने के तरफ़ ऊंगली ना दिखाई क्यों ये समझे नहीं हम 
अहले महफ़िल में हर कोई लगा था सुनाने में अपने वफा के किस्से
बात हमारी हुई तो  उठकर चल दिए क्यों ये समझे नही हम
बिछड़ते वक्त तो फैसला हुआ था की हम दोनो ना होंगे किसी के 
फिर भी हम दोनो हो गए किसी के क्यों ये समझे नही हम
किताबों में मिलती है बेवफाई के हर मर्ज की दवा
फिर भी चले गए मैखाना क्यों ये समझे नही हम 
न अब मोहब्ब्त की आरज़ू है और न दोस्तों यारों की
उठ गया इन सब से मन क्यों ये समझे नही हम 
अब तो कढ़ी चावल भी खा लेते हैं सुकून से 
छूट गई आदत जायका लेने की क्यों ये समझे नही हम
बाप के पैसों से मैने देखा है करते सभी को ऐश
मगर अपनी कमाई बचाते हैं क्यों ये समझे नही हम 
 समझे नही हम 
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akshitojha7888

Akshit Ojha

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