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यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत । उच्छिष्टमपि चा

यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत ।
उच्छिष्टमपि चामेद्यं भोजनं तमसप्रिंम् !!
गी. अ.-17/10

आशापाशशतैर्बद्धा: कामक्रोधपरायणा: ।
इहंते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसंचयन ।।
गी. अ.- 16/12 🍧😋#ज्ञान🐇🐦#संस्कार😛😋🍧🐒🐿🍉🍵#वैदिकभाव🐇🍧😋😜🍵🍉😂#समाज😁😛#स्वाभाव🐒🍹🍫🍵🐇#प्रकृति🍧🍧🐦🍹🍫🍵🍉🍧😋😛🐒🐿🤗😝🍹😊😅😀😄
हम प्रकृति की सन्तान हैं। न अपनी मर्जी से पैदा होते हैं, न ही मर्जी से मर सकते हैं, केवल कर्म हमारे हाथ में है। चूंकि आज अन्न भी तामसिक हो गया है। गीता १७/१० में-🤓😄☕😅
तामस भोजन को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि, ‘झूठ-कपट, चोरी-डकैती, धोखेबाजी आदि किसी तरह से पैसे कमाए जाएं, ऐसा भोजन तामस होता है।
इसी तरह गीता १६/१२ में---😊☕
अन्यायपूर्वक धन संचय करने वाले के लिए कहा गया है कि ‘आसुरी प्रकृति वाले मनुष्यों का उद्देश्य धन संग्रह करना और विषयों का भोग करना होता है।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे बेईमानी, धोखेबाजी, विश्वासघात, टैक्स की चोरी आदि करके, दूसरों का हक मारकर, मन्दिर, बालक, विधवा आदि का धन दबाकर और इस तरह अन्यान्य पाप करके धन का संचय करना चाहते हैं।
😅☕😄😝🤗🐿🐒🤓😀😊
यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत ।
उच्छिष्टमपि चामेद्यं भोजनं तमसप्रिंम् !!
गी. अ.-17/10

आशापाशशतैर्बद्धा: कामक्रोधपरायणा: ।
इहंते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसंचयन ।।
गी. अ.- 16/12 🍧😋#ज्ञान🐇🐦#संस्कार😛😋🍧🐒🐿🍉🍵#वैदिकभाव🐇🍧😋😜🍵🍉😂#समाज😁😛#स्वाभाव🐒🍹🍫🍵🐇#प्रकृति🍧🍧🐦🍹🍫🍵🍉🍧😋😛🐒🐿🤗😝🍹😊😅😀😄
हम प्रकृति की सन्तान हैं। न अपनी मर्जी से पैदा होते हैं, न ही मर्जी से मर सकते हैं, केवल कर्म हमारे हाथ में है। चूंकि आज अन्न भी तामसिक हो गया है। गीता १७/१० में-🤓😄☕😅
तामस भोजन को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि, ‘झूठ-कपट, चोरी-डकैती, धोखेबाजी आदि किसी तरह से पैसे कमाए जाएं, ऐसा भोजन तामस होता है।
इसी तरह गीता १६/१२ में---😊☕
अन्यायपूर्वक धन संचय करने वाले के लिए कहा गया है कि ‘आसुरी प्रकृति वाले मनुष्यों का उद्देश्य धन संग्रह करना और विषयों का भोग करना होता है।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे बेईमानी, धोखेबाजी, विश्वासघात, टैक्स की चोरी आदि करके, दूसरों का हक मारकर, मन्दिर, बालक, विधवा आदि का धन दबाकर और इस तरह अन्यान्य पाप करके धन का संचय करना चाहते हैं।
😅☕😄😝🤗🐿🐒🤓😀😊

🍧😋ज्ञान🐇🐦संस्कार😛😋🍧🐒🐿🍉🍵वैदिकभाव🐇🍧😋😜🍵🍉😂समाज😁😛स्वाभाव🐒🍹🍫🍵🐇प्रकृति🍧🍧🐦🍹🍫🍵🍉🍧😋😛🐒🐿🤗😝🍹😊😅😀😄 हम प्रकृति की सन्तान हैं। न अपनी मर्जी से पैदा होते हैं, न ही मर्जी से मर सकते हैं, केवल कर्म हमारे हाथ में है। चूंकि आज अन्न भी तामसिक हो गया है। गीता १७/१० में-🤓😄☕😅 तामस भोजन को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि, ‘झूठ-कपट, चोरी-डकैती, धोखेबाजी आदि किसी तरह से पैसे कमाए जाएं, ऐसा भोजन तामस होता है। इसी तरह गीता १६/१२ में---😊☕ अन्यायपूर्वक धन संचय करने वाले के लिए कहा गया है कि ‘आसुरी प्रकृति वाले मनुष्यों का उद्देश्य धन संग्रह करना और विषयों का भोग करना होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे बेईमानी, धोखेबाजी, विश्वासघात, टैक्स की चोरी आदि करके, दूसरों का हक मारकर, मन्दिर, बालक, विधवा आदि का धन दबाकर और इस तरह अन्यान्य पाप करके धन का संचय करना चाहते हैं। 😅☕😄😝🤗🐿🐒🤓😀😊