कश्मकश में ज़िंदगी हर लम्हा यूँ गुजर गया। मेरे अंदर के इंसान पर हैवान जब चढ़ गया। मिट गई ये शख़्सियत और राख में बन गया। रिश्ते में जो यकीन था जो पल में बिखर गया। वफादार रहा न मैं और तिजारत कर गया। जब मेरे दिल मे इंसान घुट-घुटकर मर गया। अब नहीं मैं ईश्वर का रूप उससे बिछड़ गया। मैं उसके सामने उससे ही सब मुकर गया। मैंने जो चार शब्द अपनी सहभागी KRK🥰 Khushbu Rawal Khushi दी की इस कविता में से चुने है, वे इस प्रकार हैं कश्मकश- असमंजस हैवान- दुष्ट शख्सियत- निज विवेक रिश्ते- संबंध