Nojoto: Largest Storytelling Platform

Unsplash हाथों की लकीरें कब माथे की सलवटें बन गई

Unsplash  हाथों की लकीरें कब माथे की सलवटें बन गई ,
पता ही न चला।
जीने आए थे जिन्दगी बे उसूलों से,बे हिसाब से,
कब किश्तों में गुजर गई, पता ही न चला 
उलझनों के दायरे से कोई राहत का धागा  तो होता,
कितनी  गांठे लगती गई रिश्तों में, पता ही न चला।
                 Mona pareek

©Mona Pareek #camping  poetry in hindi poetry quotes hindi poetry SIDDHARTH.SHENDE.sid  बाबा ब्राऊनबियर्ड  Mukesh Poonia  Madhusudan Shrivastava  Dr.santosh Tripathi
Unsplash  हाथों की लकीरें कब माथे की सलवटें बन गई ,
पता ही न चला।
जीने आए थे जिन्दगी बे उसूलों से,बे हिसाब से,
कब किश्तों में गुजर गई, पता ही न चला 
उलझनों के दायरे से कोई राहत का धागा  तो होता,
कितनी  गांठे लगती गई रिश्तों में, पता ही न चला।
                 Mona pareek

©Mona Pareek #camping  poetry in hindi poetry quotes hindi poetry SIDDHARTH.SHENDE.sid  बाबा ब्राऊनबियर्ड  Mukesh Poonia  Madhusudan Shrivastava  Dr.santosh Tripathi
monapareek4137

Mona Pareek

Bronze Star
New Creator
streak icon1