सच कहते हैं,पागल हु मैं बिन मौसम का,बादल हु मैं कितने सपने बुन बैठी थी नए सवेरे के,मन में भूल गई कि बंद पड़ी सी डिबिया का कोई काजल हु मैं सच कहते हैं,पागल हु मैं हा सच हैं, के पागल हु मैं नहीं मिलेगा चंदा मुझ को सूरज से भी अनबन हैं फिर भी सपने बुन बैठी हु गज़ब की खुद से ठनगन हैं उम्मीदों से घायल हु मैं कोरा कोई काज़ल हु मैं सच कहते है,पागल हु मैं क़दम क़दम पर ठोकर खाई ज़र्रा जर्रा घायल हु मैं नहीं रहे दो चेहरे मेरे ख़ुद ही खुद की क़ायल हु मैं मैला कोई आंचल हु मै ये सच हैं के पागल हु मैं सच कहते हैं,पागल हु मैं... ©ashita pandey बेबाक़ #happy_diwali प्यार पर कविता