गली से फिर आज तेरी मैं गुज़री चलते चलते यूँ फिर मैं तुझसे ही जा मिली कुछ सवालों को था खोजना जवाबों में फिर तुझसे ही जा मिली ये सर्द भरी रातें, तेरी अनकही बातें हाथों में हाथ डाले, चले जिन राहों से उन राहों में फ़िर तुझसे ही जा मिली गुज़ारी थी जो शामें साथ में कुछ तुम्हारी कहानी सुन कर कुछ अपने किस्से सुना कर उन ढलती शामों में फिर तुझसे ही जा मिली पर ये साथ सिर्फ़ सफ़र तक था हमारे जुदा हुई मंजिलें फिर इस कदर कि फिर सिर्फ़ ख्वाबों में ही तुझसे मिली ख्वाबों के दरमियां