विदाई क्या सुनाऊ मैं तुम्हें ये दास्ताँ अपनी , यह है मेरी जुबानी एक कहानी अपनी ! मैं एक कली थी , जो एक बाग़ में खिली थी ! मेरे चेहरे पर एक अधखिली मुस्कान थी , जिसकी गवाह ये धरती और ये फिजां थी ! बाग़ के माली ने बड़े प्यार से संवारा था मुझे , आंधी और तूफानों में संभाला था मुझे ! पल्लवन के बाद जब मैं फूल थी बनी , माली के चेहरे पर एक मुस्कान थी भली ! मेरा खिलना माली के प्रयासों का फल था , कुसुमित हुआ मेरा चेहरा , ये क्या कम था ? लेकिन एक दिन वक्त की आंधी ने मेरे जीवन को ऐसा झकझोरा , मेरी कोमल-सी पंखुडियों को एक ही पल में बिखेरा ! वह दिन था मेरे जीवन का अन्तिम क्षण , जिसने छीन लिया मेरी उस मृदुल मुस्कान को ! उस दिन माली की आंखों में ऐसा मर्म था छाया , जैसे एक पिता ने अपनी बेटी को डोली में था बिठाया ! वह दिन था माली का कली से जुदाई का , वह दिन था एक कली की विदाई का ! – सोनल पंवार ©Sonal Panwar " विदाई #माली और कली की जुदाई का मर्म