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केवट संग प्रसंग केवट! हो भैया मेरे ये, कैसे छेड़ र

केवट संग प्रसंग

केवट! हो भैया मेरे ये,
कैसे छेड़ रहे तुम तान?
कहते हो श्रीराम प्रभु से,
मिले हो तुम श्रीमान।
ये बातें तुम्हरी तो हमरे,
छील रहीं बस कान।
मानों सूखे रेत में कोई,
डाल रहा हो धान।
कहाँ तुम्हारी नाव ही है,
है कहाँ तुम्हारा ज्ञान?
सदियों गांजे डाले हो,
तुम पुण्यों के थान?
मैंने भी तो कितने कल्पों,
है किया प्रभु का ध्यान।
लेकिन दर्शन देने को तो,
तुम्हें बनाये शान।
व्यर्थ हमारी आवाज़ें है,
व्यर्थ सभी हैं आन।
सुखी वही जिनसे मिलने,
प्रभु ही खुद लें ठान।
कह दोगे क्या प्रभु से कि
हम खूब रहे हैं छान?
और निरन्तर गाते उनके,
स्वागत के सब गान।
प्रभु ने हमको निज दर्शन का,
नहीं दिया जो दान।
शपथ हमारे कुल की है फिर,
त्याग देंगे सब जान।

©Sukhdev केवट से complaint.
केवट संग प्रसंग

केवट! हो भैया मेरे ये,
कैसे छेड़ रहे तुम तान?
कहते हो श्रीराम प्रभु से,
मिले हो तुम श्रीमान।
ये बातें तुम्हरी तो हमरे,
छील रहीं बस कान।
मानों सूखे रेत में कोई,
डाल रहा हो धान।
कहाँ तुम्हारी नाव ही है,
है कहाँ तुम्हारा ज्ञान?
सदियों गांजे डाले हो,
तुम पुण्यों के थान?
मैंने भी तो कितने कल्पों,
है किया प्रभु का ध्यान।
लेकिन दर्शन देने को तो,
तुम्हें बनाये शान।
व्यर्थ हमारी आवाज़ें है,
व्यर्थ सभी हैं आन।
सुखी वही जिनसे मिलने,
प्रभु ही खुद लें ठान।
कह दोगे क्या प्रभु से कि
हम खूब रहे हैं छान?
और निरन्तर गाते उनके,
स्वागत के सब गान।
प्रभु ने हमको निज दर्शन का,
नहीं दिया जो दान।
शपथ हमारे कुल की है फिर,
त्याग देंगे सब जान।

©Sukhdev केवट से complaint.
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