क्या खोया हैं क्या पाया क्या खोया हैं क्या पाया हम ने बीते वर्ष पुराने में मर- मर के जीना सीखा हम ने बीते वर्ष पुराने में क्या खोया हैं क्या पाया हम ने बीते वर्ष पुराने में *** डर का भी घूँट- घूँट पिया हम ने जीते थे गुजारें में अकेले मे समय बिताया हम ने खुद के बस सहारे में क्या खोया हैं क्या पाया हम ने बीते वर्ष पुराने में *** अपनो को भी छोड़ दिया हम ने हो करके किनारे में खुद को भी बहुत रुलाया हम ने अपनो के गिराने में क्या खोया हैं क्या पाया हम ने बीते वर्ष पुराने में *** हर समय अकेला पाया हम ने सबके साथ रहने में खुद को अकेला कर लिया हम ने अपनो के दिखावे में क्या खोया हैं क्या पाया हम ने बीते वर्ष पुराने में *** हर जीत को भी भुलाया हम ने अपनो को जिताने में सभी को बदलते देखा हम ने नाये साल आने में क्या खोया हैं क्या पाया हम ने बीते वर्ष पुराने में *** हर गली को, हर मोहल्ला हम ने देखा था सन्नाटें में घर मे छुप- छुप देखा था हम ने लगे जान बचाने में क्या खोया हैं क्या पाया हम ने बीते वर्ष पुराने में *** लेखिका- ज्योति गुर्जर "सेव्या" ©JS GURJAR #Corona_Lockdown_Rush