साथ तेरा मिले मुझको दिल चाहता है, पर जाने किन मजबूरी से पीछे रहता है । खुवाइशे मेरी कई दबी है वक़्क़्त में, तेरी न रहे अधूरी कोई सोच के पीछे रहता हूँ । हाथो में हाथ तेरा लेकर रिमझिम सावन चाहता हूँ, पर जाने किन मजबूरी से समर में घाव सहता हूँ । भीग न जाये चक्षु तेरे वक़्क़्त मेरे की आड़ में, निज-निज नित-नित देख कदम ना आगे बढ़ाता हूँ । हाँ मै भी संग तेरे चलना चाहता हूँ, पर जाने किन मजबूरी से पीछे रहता हूँ $रोहित सैनी$