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हौसलों के कंधे झुके हुए थे, कुछ इंतज़ार में टूटे ह

हौसलों के कंधे झुके हुए थे,
कुछ इंतज़ार में टूटे हुए थे।
पर नहीं हारे, नहीं डरे,
खुद से लड़ते हुए थे।

जीत का स्वाद था इनको,
अपने आप से नहीं हारते थे।
कोई भी रुकावट नहीं थी रोक पाने की,
अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ते थे।

हर मुश्किल परीक्षा के बाद,
बढ़ रहे थे हर नए मुकाम पर।
जीत की ख़ुशी में मुस्कुराते हुए,
चलते रहते थे साथ अपने सपनों के तरफ।

हौसलों के कंधे झुके हुए थे,
कुछ इंतज़ार में टूटे हुए थे।
पर नहीं हारे, नहीं डरे,
खुद से लड़ते हुए थे।

©Suraj Dhunde
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