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कल रात जो ओझल हो गयी थी, फिर आज सताने आई है, अपनी

कल रात जो ओझल हो गयी थी,
फिर आज सताने आई है,
अपनी उस चंचल  चितवन  से,
फिर मुझे रिझाने  आई है...

उसकी मतवाली आँखों मे,
कुछ हल्का हल्का नशा सा है,
यह रम है या मार्गरीटा,
या मुझको ऐसा हुआ सा है...

उसके साथ बीते लम्हो को याद दिलाक़े,
फिर तकिया भिगोने आयी है,
कल रात जो ओझल हो गयी थी,
फिर आज सताने आई है...

©dev
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