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कहीं वैराग का नशा है, तो कहीं मन को मिलती सजा है,

कहीं वैराग का नशा है, तो कहीं मन को मिलती सजा है,

ये कैसे काफिले संग सफर है, जिसकी मंजिलें हीं लापता है।

जो उड़ानें आसमानों की हैं, तो डोर ये बेवजह है,

अब किनारों से तौबा कर आये हैं, तो बहने में हीं मजा है।

यूँ तेरा मुझमें मिलना, खुद से रु-ब-रु होने की अदा है,

कायनातों को हुई शिकायत है, ऐसे बना तू मेरा खुदा है।

* कहीं रात अंधेरों से भारी है, तो कहीं सुबह को रौशनी की रजा है, ओस के नमी की एक कीमत है, सितारों की बेवफाई बेख़ता है।

कहीं लम्हों को रोकने की ख़्वाहिश है, तो कहीं ठहरा वक़्त खौफ़जदा है, ये बेमौसम की आशिक़ी है, जो हर मौसम में

लिखती वफ़ा है।

कहीं बर्फीली वादियां हैं, जहां गूंजती मोहब्बत की सदा है, कुछ रूहों की वापसी तय है, जिनका बिछड़ना कुदरत पर कर्ज बे-अदा है।

©Kanchan Agrahari
  #raindrops  Anshu writer @_सुहाना सफर_@꧁ঔৣMukeshঔৣ꧂RJ09 Munni R Ojha sushil dwivedi