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बचपन था तो समझ नहीं पाते थे, बड़े हुए तो समझा क्य

बचपन था तो समझ नहीं पाते थे, 
बड़े हुए तो समझा क्या 
बचपन से देखा अपनों को झगड़ते, 
सोचती हु कोई त्यौहार इन्होने मुस्कुरा के मनाया क्या 
बचपन में जहां बच्चे मस्ती में झूमते रहते थे ,
और हम एक कोने में बैठ कर रोते रहते थे ,
सवाल बहुत है जुबा पर
पर शायद जवाब मिलते नहीं,
क्या कोई दिन ख़ुशी से बिताया क्या 
जिंदगी के 21 साल बीत गए गवाते गवाते
अब लगता है कमाया क्या
तोड़ने के लिए हाथ बड़े अक्सर लोगो के 
अब लगता टूटे दिलो को कोई जोड़ पाया क्या

©Miraan ruth Nagvansiya #ChaltiHawaa
बचपन था तो समझ नहीं पाते थे, 
बड़े हुए तो समझा क्या 
बचपन से देखा अपनों को झगड़ते, 
सोचती हु कोई त्यौहार इन्होने मुस्कुरा के मनाया क्या 
बचपन में जहां बच्चे मस्ती में झूमते रहते थे ,
और हम एक कोने में बैठ कर रोते रहते थे ,
सवाल बहुत है जुबा पर
पर शायद जवाब मिलते नहीं,
क्या कोई दिन ख़ुशी से बिताया क्या 
जिंदगी के 21 साल बीत गए गवाते गवाते
अब लगता है कमाया क्या
तोड़ने के लिए हाथ बड़े अक्सर लोगो के 
अब लगता टूटे दिलो को कोई जोड़ पाया क्या

©Miraan ruth Nagvansiya #ChaltiHawaa