वहीं सूरज, वहीं रोशनी, वहीं सवेरा, वहीं आशायें, फर्क हैं तो बस कल के गुजरे हुए, वक्त का। श्वास जो खर्च हो गयी वो , न फिर लौट कर आए। इसीलिए हर एक श्वास के संग, जीने की उम्मीदों को सजाये। कुछ नहीं बदला हैं अब भी, वैसी की वैसी ही हैं चीजें सभी। कल जो सोये थे, कुछ जागे हैं, कुछेक श्वास के धागों से छूट, प्राण त्यागे हैं। ये खेल हैं नियती का, इस खेल से लेते हैं सीख। आज के आगाज को, मुस्कराते जियो। कल जो बीता उसे, भुलाकर जियो, आज तुम हो ये , खुशनसीबी हैं। श्वास भरनी ही है बाकी तो, खिलखिला कर जियो। शिकवे, शिकायतें, कल के ज़ख्म, नफरत, डर, और आडंबर छोड़, जीना ही है तो, जिंदगी जश्न बनाकर जियो। Kavita jayesh panot ©Kavita jayesh Panot #inspiration# poetry