ए दिल संभल जरा इस जहां में अब तेरे कदरदान नहीं रहे जो हमें कहते थे खुदा अब हम वहां मेहमान नहीं रहे अब हम उसे खतावर कहे भी तो कैसे कहें अरे पतझड़ के मौसम में तो शाखों पर पत्ते भी मेहरबान नहीं रहे... धीरज सैनी धीर... ©Direct Dil se ए दिल संभल जरा इस जहां में अब तेरे कदरदान नहीं रहे जो हमें कहते थे खुदा अब हम वहां मेहमान नहीं रहे अब हम उसे खतावर कहे भी तो कैसे कहें अरे पतझड़ के मौसम में तो शाखों पर पत्ते भी मेहरबान नहीं रहे... #WorldEnvironmentDay