वो एक शुरुवात थी बीते मेरे कल मे. वक्त धिमे से गुजर रहा था. वो बूँद बूँद सी बरस रही थी दिल पर. मै भी मिट्टी की खुशबू मे उलझ रहा था. एक इतर सा था समाया उन हवाओ मे शायाद. मुझे उपजाने मे कंबखत पलभरकिभी देर न लगी. एक जमाने से सुखे झेले थे इस्कदर खुदपर की दिल मे दुलालो को निकलने मे एक तिंकीकी भी पेहर ना लगी. वो सूरज के गिर्ध इंद्रधनूसा चेहरा. इस तरह से भितर समाया है मुझमे. वो पानी सी आखे , आला से लब. ताउम्र लगा मै उसे पाने की सुझमे. #poetry