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जब बचपन में उसको चेहरे पर थप्पड़ लगाते हुये देखा,

जब बचपन में उसको चेहरे पर थप्पड़ लगाते हुये देखा,
तब-तब  खुद  को गलत  काम  से  बचाते हुये देखा ।

जब   मेरे   आँखों   से  आंँसूं  टपकते   हुये  देखा,
सीने  से लगा ली ममता  के उसको बरसते  हुये देखा।

लगी  जन्ऩत़ सी  हवायें जब  जब  मेरे  जीस्म़  में ,
मैं   खुद  को  माँ  के गोद  में  सोते  हुये   देखा ।

पाला है मुझे उसने कलेजे की एक टूकड़े कि तरह,
तेज धुप में जब उसे,आंचल से ढ़कते हुये देखा ।

पुछ   कर   खबऱ वो   लगी   रोने दुर गॉव  में,
जब  भी   लॉकडाउन   को  बढ़ते  हुये  देखा।

धरों   में  खाना  खाना  छोड़  चुकी  थी वो,
जब मुझे सपने में भूख़ से तड़पते हुये देखा।

खुदा का शुक्ऱ है दुनियां दौलत रखी थी उसके सामने,
फिर भी में उसे,मेरे चेहरे की दीदार को तरसते हुये देखा।

दुआं करने लगी वो रो रो खुदा से दामऩ को फैलाकर,
जब भी मुझे जिंदगी के सफर में लड़खडाते हुये देखा।

आँखें हो गई थी उसकी अचानक नम"सिद्दिकी"
घर जाने की खुशी को जब गम़ में बदलते हुये देखा।

कवि/शायऱ
सुफियान"सिद्दिकी"
अररिया बिहार। #MothersDay सुफियान"सिद्दिकी"के अंदाज में।।
जब बचपन में उसको चेहरे पर थप्पड़ लगाते हुये देखा,
तब-तब  खुद  को गलत  काम  से  बचाते हुये देखा ।

जब   मेरे   आँखों   से  आंँसूं  टपकते   हुये  देखा,
सीने  से लगा ली ममता  के उसको बरसते  हुये देखा।

लगी  जन्ऩत़ सी  हवायें जब  जब  मेरे  जीस्म़  में ,
मैं   खुद  को  माँ  के गोद  में  सोते  हुये   देखा ।

पाला है मुझे उसने कलेजे की एक टूकड़े कि तरह,
तेज धुप में जब उसे,आंचल से ढ़कते हुये देखा ।

पुछ   कर   खबऱ वो   लगी   रोने दुर गॉव  में,
जब  भी   लॉकडाउन   को  बढ़ते  हुये  देखा।

धरों   में  खाना  खाना  छोड़  चुकी  थी वो,
जब मुझे सपने में भूख़ से तड़पते हुये देखा।

खुदा का शुक्ऱ है दुनियां दौलत रखी थी उसके सामने,
फिर भी में उसे,मेरे चेहरे की दीदार को तरसते हुये देखा।

दुआं करने लगी वो रो रो खुदा से दामऩ को फैलाकर,
जब भी मुझे जिंदगी के सफर में लड़खडाते हुये देखा।

आँखें हो गई थी उसकी अचानक नम"सिद्दिकी"
घर जाने की खुशी को जब गम़ में बदलते हुये देखा।

कवि/शायऱ
सुफियान"सिद्दिकी"
अररिया बिहार। #MothersDay सुफियान"सिद्दिकी"के अंदाज में।।

#MothersDay सुफियान"सिद्दिकी"के अंदाज में।। #Shayari