उस गांव में जो हवेली थी वो .. कुछ खंजर हों चुकी थीं कुछ डरावनी सी.. जैसे किसिकी परछाई थी वहा. जो धुंधली तस्वीर में... पर नज़र से परे ..... कुछ मिठास भरा स्वर जो धीमे धीमे कोई नाम लिए गुनगुना रहा हो.... लेकिन. एक बात पूछना चाहती थी जो कुछ सवाल जवाब किसिका इंतजार था. बरसों पहले से हैं ,... वोही सुनसान जगह पर,सुनसान राहें जो,किसी मंजिल की तलाश में गुम हो जो कुछ कह रही हो. ,... मानो, कुदरत को भी तरस आता हों... तेज़ आंधी में उड़ी, हवाओं का झोंका आया... और सबकुछ बिखर गया. ... . पहले की तरह...... ©Sunita Chhattani हवेली