सबसे निकम्मा सबसे नकारा मैं एक ऐसा बच्चा था स्कूल में सबसे कमजोरी का मारा ना किसी ने दिया साथ मैं बेबसी का हारा बोलना इसे आता नहीं और यह पढ़ाई कर से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं ...... आदर्श वह स्कूल कहलाई मैंने विद्या कि वो अमूल धरोहर पाई पर फिर भी न जाने क्यों मैं वहां पर सात-आठ सालों तक कुछ बोल ही ना पाई। ... एक भोली सी सहमी सी लड़की गुमसुम एक कोने में जो बैठी रहती न जाने क्यों उससे ही सब यूं एंठी रहती। ...... कभी किसी ने दिल के जज्बात को ना जाना, कभी किसी ने उस सांवली लड़की के ख्वाबों को ना पहचाना। ...... न जाने क्यों वह सभी को कमजोर,बावली सी नजर आती है पर ईश्वर को तो उसकी छवि दिख ही जाती। .... सभी ने कह दिया यह किसी काम की नहीं है अब, ठहाके लगा के हंसते सब। ...... बोला सभी ने मुझे पढ़ने वाली लड़कियों की तू राह चल नहीं सकती कुछ भी हो तू अब कभी सम्भल नहीं सकती । .... ताने सुने बहुत से ऐसे.... उस गली में रहकर तेरा भविष्य कुछ नहीं हो पाएगा और यह उन्हें क्या पता था यह तो मेरा आने वाला समय ही बताएगा ... वक्त सुनहरा आया मेरा , कामयाबी का लाया सवेरा। ...... जो किसी के असफलता का मजाक बनाते हैं वह खुद मजाक बन कर रह जाते हैं जिस पर हो रब का साया ,भला उस पर किसने कहर बरपाया। ..... जब भी किसी ने दिल दुखाया, मेरे रब का मैने सिर पर हाथ पाया। _ज्योति गुर्जर #मासूम_बच्ची