एक चीख ,,,, 17 लोग ,,👈 क्या मिलगी सजा? अंधेरों में आज साक्षी खुद साक्षी बन गई मौत की, चीख रही थी ,, ३४ घाव में सहमी हुई सी, रक्त की नदी में भीगी सी, साहिल की छुरी में लिपटिसी, साक्षी की चीख, अंधेरों में गुमनाम सी, १७,,,लोगो को सुनाई ना दी,,, साक्षी की चीख कैसी है विडंबना, गुनेगार तो वो १७ लोग भी है, क्या मिलेगी उनको सजा? रात भी चहल पहल कर रही, आखों को मूंद के , कान को बंद करके, जिंदा लाशे सड़को पर टहल रही , ना गम है, ना बचाने की भावना, खुद की कहा बेटी थी, खुद की कहा बहन थी, तो चीख सुनाई देती, अब तो लगता है मानवता मर चुकी , उसकी साक्षी, साक्षी बन गई। बस, चीख बन के साहिल पर ठहरी, ये तो अब अंधों बहेरो की दुनिया है। जहा हर रोज तमाशा होता है। रात का पहरा भी मस्त नजर जुकाए ठरता है। खून खून की लालिमा , अब मजहब की क्या बात करे! मरने वाली तो एक साक्षी थी। उन स्त्राह की क्या बात करे। देख तमाशा सड़को पर चीखों का, चीखों के बाजार , गली गली नुक्कड़ पर सरे आम पड़े। रचेता:काव्या माझधार (देवल) 31/5/2023 ©ADV.काव्या मझधार( देवांशी, dakkusri) #dusk साक्षी की चीख