जीवनसाथी संग रिश्ता! सप्तपदी मैं तुझ संग, जीवन मैत्री तुमसे अंतरंग। हर रिश्ते रस्मों में रंग भरती , बनकर तुम्हारी वाम अंग! सर का आँचल, घर की छत सा। बिंदिया मेरी, रिश्ते का गौरव संकल्प! दो पाटों में जाता सिन्दूर, कहता दोनों मिलकर चलना संग। कजरा मेरा घना अन्धेरा, जीवन ज्योति देखूँ बस तुम संग! कंगन खनक तेरे छूने से, पुलकित मेरा हर अंग। अग्नी साक्षी बने थे साथी, तप कर हुए हैं स्वर्ण दीप्त संग! पाजेब की छन - छन कहती , दोनों साथ चलो तो बजे मधुर तरंग। पाणिग्रहण वचन बध तुम मुझसे, प्राणान्त तक निभाउँगी वचन तुम संग। प्रेरणा सिंह #हरितालिका तीज