चलता चलता इस टीले पर आ चुका हूँ ! कुछ नहीं है चारों और बस वीरानियों के साये है ! उनको ताक चुका हूँ ! ज़िन्दगी मे क्या पाया क्या खोया ये सोचने इतनी ऊपर चढ़ चुका हूँ ! जीवन कुछ नहीं है मिथ्या है ये जान चुका हूँ ! रेत पर मिटते कदमो के निशान को मिटते देख़ चुका हूँ ! सब कुछ मिट जाता है कुछ नहीं रह जाता ये जान चुका हूँ ! फिर वापिस आऊगा यहाँ इस टीले पर, चलता चलता एक दिन फिर जरूर ! pooja udeshi✍️ टीला रेत का #newplace