सच ही तो हैं पिंजरे में बंद ज़िंदगियां चहक रही है,अपने घरों में... परिवार अब सीमित है, आंगन और कमरो में.... सब एक दूसरे की परवाह कर , वो खुद अपनी ज़िंदगी ही संवार रहे.... सच ही तो हैं, चाहत से भरे पल अब दिल से दिल की बात कह रहे.... जी रहे डर के साये में, पर सब एक साथ सह रहे.... सच ही तो है,...! 'चाहत' सच ही तो है