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Poem on Sita Mata in Hindi – रामायण में एक ऐसा प्र

Poem on Sita Mata in Hindi – रामायण में एक ऐसा प्रसंग आता है जहाँ पर लोग प्रभु श्री राम पर उँगलियाँ उठाते है. इस कविता में यह बताया गया है कि माँ सीता क्या सोचती है. उनका प्रेम, त्याग और विश्वास कितना पवित्र है.

Poem on Sita in Hindi

विश्व ने राम को जाने क्या क्या कहा,
सीता कहती रही राम ही सत्य थे…
कब उन्होंने कह मैं चलूँ साथ में
पथ ये बनवास का मैंने ही था चुना,
वो गिनाते रहे राह की मुश्किलें
प्रेम थे वो मेरे, प्रेम मैंने चुना.
विश्व ने राम को जाने क्या क्या कहा,
मैं तो कहती रही राम ही सत्य थे…
मैंने ही लांघी थी सीमा की देहरी
दोष किसका था मेरा या श्री राम का
राम न जाते लक्ष्मण को न भेजती
सब मेरे ही किये का ये परिणाम था.
विश्व ने राम को जाने क्या क्या कहा,
मैं तो कहती रही राम ही सत्य थे…

जिसको पाने को दर दर भटकते रहे,
प्रेम के आगे सागर भी न टिक सका
वो भला ऐसे कैसे मुझे त्यागोगें,
एक क्षण भी मेरे बिन जो न रह सका.
विश्व ने राम को जाने क्या क्या कहा,
मैं तो कहती रही राम ही सत्य थे…
प्रेम जो अपना वो अग्नि पर धर दिए,
उनका उपकार था वो मेरे लिए,
पीढ़ियाँ मुझको कुछ न कहे इसलिए
सारे अपयश उन्होंने स्वयं ले लिए.

विश्व ने राम को जाने क्या क्या कहा,
मैं तो कहती रही राम ही सत्य थे…
तुमने देखि विवशता न श्री राम की,
एक तरफ थी प्रजा एक तरफ जानकी,
वो तड़पता हृदय भी न तुम पढ़ सके
गढ़ ली थी परत जिसमें पाषाण की.
विश्व ने राम को जाने क्या क्या कहा,
मैं तो कहती रही राम ही सत्य थे…
कह लो कहना हो जो, जो कह सको राम को,
पर ज्ञात हो ऐसा राजा नही पाओगे,
धर्म को थामते लुट गया जो स्वयं,
ऐसे त्यागी. तपी को तरस जाओगे.

विश्व ने राम को जाने क्या क्या कहा,
सीता कहती रही राम ही सत्य थे… seeta ram par poem
Poem on Sita Mata in Hindi – रामायण में एक ऐसा प्रसंग आता है जहाँ पर लोग प्रभु श्री राम पर उँगलियाँ उठाते है. इस कविता में यह बताया गया है कि माँ सीता क्या सोचती है. उनका प्रेम, त्याग और विश्वास कितना पवित्र है.

Poem on Sita in Hindi

विश्व ने राम को जाने क्या क्या कहा,
सीता कहती रही राम ही सत्य थे…
कब उन्होंने कह मैं चलूँ साथ में
पथ ये बनवास का मैंने ही था चुना,
वो गिनाते रहे राह की मुश्किलें
प्रेम थे वो मेरे, प्रेम मैंने चुना.
विश्व ने राम को जाने क्या क्या कहा,
मैं तो कहती रही राम ही सत्य थे…
मैंने ही लांघी थी सीमा की देहरी
दोष किसका था मेरा या श्री राम का
राम न जाते लक्ष्मण को न भेजती
सब मेरे ही किये का ये परिणाम था.
विश्व ने राम को जाने क्या क्या कहा,
मैं तो कहती रही राम ही सत्य थे…

जिसको पाने को दर दर भटकते रहे,
प्रेम के आगे सागर भी न टिक सका
वो भला ऐसे कैसे मुझे त्यागोगें,
एक क्षण भी मेरे बिन जो न रह सका.
विश्व ने राम को जाने क्या क्या कहा,
मैं तो कहती रही राम ही सत्य थे…
प्रेम जो अपना वो अग्नि पर धर दिए,
उनका उपकार था वो मेरे लिए,
पीढ़ियाँ मुझको कुछ न कहे इसलिए
सारे अपयश उन्होंने स्वयं ले लिए.

विश्व ने राम को जाने क्या क्या कहा,
मैं तो कहती रही राम ही सत्य थे…
तुमने देखि विवशता न श्री राम की,
एक तरफ थी प्रजा एक तरफ जानकी,
वो तड़पता हृदय भी न तुम पढ़ सके
गढ़ ली थी परत जिसमें पाषाण की.
विश्व ने राम को जाने क्या क्या कहा,
मैं तो कहती रही राम ही सत्य थे…
कह लो कहना हो जो, जो कह सको राम को,
पर ज्ञात हो ऐसा राजा नही पाओगे,
धर्म को थामते लुट गया जो स्वयं,
ऐसे त्यागी. तपी को तरस जाओगे.

विश्व ने राम को जाने क्या क्या कहा,
सीता कहती रही राम ही सत्य थे… seeta ram par poem