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लिखी से अपनी टक्करा रहा हू, हां, आज फिर तुझे बुला

लिखी से अपनी टक्करा रहा हू,
हां, आज फिर तुझे बुला रहा हू|

बुझा दिए थे सभी चिराग रिश्तों के मैने,
आफताब, रोज़ नये फिर उगा रहा हू | टकराव
लिखी से अपनी टक्करा रहा हू,
हां, आज फिर तुझे बुला रहा हू|

बुझा दिए थे सभी चिराग रिश्तों के मैने,
आफताब, रोज़ नये फिर उगा रहा हू | टकराव
amitraizada3374

amit raizada

New Creator

टकराव