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हमारे बाद ज़िंदा ख़्वाब की नस्लें नहीं होतीं हमारी श

हमारे बाद ज़िंदा ख़्वाब की नस्लें नहीं होतीं
हमारी शायरी के खेत में फसलें नहीं होतीं
अकेला हूँ तभी तो सोचता हूँ और लिखता हूँ
मैं गर तन्हा नही होता तो ये गज़लें नहीं होतीं

--प्रशान्त मिश्रा ये गज़लें नहीं होतीं
हमारे बाद ज़िंदा ख़्वाब की नस्लें नहीं होतीं
हमारी शायरी के खेत में फसलें नहीं होतीं
अकेला हूँ तभी तो सोचता हूँ और लिखता हूँ
मैं गर तन्हा नही होता तो ये गज़लें नहीं होतीं

--प्रशान्त मिश्रा ये गज़लें नहीं होतीं

ये गज़लें नहीं होतीं