छण छण छण बजते थे जो इश्क के घुंघरू, आज अचानक ही कैसे चटकने लगे हैं... क्या कमी रह गई थी हममे, जो तेरे हाथों से गैरों के दरवाजे खटकने लगे हैं... कभी किसी के दिल के महल के राजा थे हम, आज क्यों बेघर होकर किसी घर की तलाश में भटकने लगे हैं... जो तेरे दिल से जज्बात सीधे मेरे दिल तक आते थे, अब जाने बीच में कौनसे स्टेशन पर अटकने लगे हैं... ©chandra_the_unique jane kaha atkne lge...