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White पिता का वात्सल्य मां से बिल्कुल अलग होता है,

White पिता का वात्सल्य मां से बिल्कुल अलग होता है,एक क्षण पिता बच्चे को दुलार रहा होगा तो अगले ही क्षण उसे पीट रहा होगा. मां का वात्सल्य इसके विपरीत है,वो बच्चे की ज़िद,उनकी बदमाशी यूंही माफ कर देती है.मां का क्रोध बच्चे पर तब होता है जब उसकी किसी बात से उसका अहित हो रहा हो पर पिता बच्चे को दूसरों का अहित करने के लिए दण्ड देता है.आपने देखा होगा माएं बच्चों को कंधे पर नहीं बैठाती हैं ,वो उन्हें गोद में सुरक्षित रखना चाहतीं हैं,जबकि पिता बच्चे को अपनी उंगली के बाद सीधा अपना कंधा देता है बैठने के लिए, बिना डरे की वो नीचे गिर जाएगा,वो ऐसा करता है ताकि बच्चा दुनियां को एक ऊंचाई से देख सके,वो देख सके कि जमीन से ऊपर होते ही ये दुनियां कैसे अलग दिखने लगती है,छोटी दिखने लगती है.ताकि बच्चे में ये समझ बने कि उसे अपनी जगह कहां और कैसे बनानी है.पिता उसे परियों की कहानी नहीं सुनाता,चोट लगने पर रोने नहीं देता.जबकि बच्चे के लिए पिता बचपन में टॉफियां लाने वाला इंसान और जवानी में उसकी आजादियों पर ताला लगाने वाला हैवान से अधिक कुछ नहीं.पिता चाहे तो इस छवि को तोड़ सकता है,पर वो ऐसा नहीं करता क्योंकि पिता चाहता है कि बच्चा मजबूत बने,इतना मजबूत की जब उसे घर से बाहर जाना हो तो वो हिचके ना,इतना मजबूत की जीवन के किसी भी कठिन फैसले को लेने से वो डरे ना,इतना मजबूत की जब एक दिन उसे अपने पिता की अर्थी को कंधा देना हो तो कमजोर ना पड़े,टूट ना जाए,बल्कि वो याद करे कैसे बचपन में पिता ने उसे अपना कंधा दिया था.......!

©Andy Mann #पिता  Arshad Siddiqui  Rakesh Srivastava  Ashutosh Mishra  अदनासा-  वैद्य (dr) उदयवीर सिंह
White पिता का वात्सल्य मां से बिल्कुल अलग होता है,एक क्षण पिता बच्चे को दुलार रहा होगा तो अगले ही क्षण उसे पीट रहा होगा. मां का वात्सल्य इसके विपरीत है,वो बच्चे की ज़िद,उनकी बदमाशी यूंही माफ कर देती है.मां का क्रोध बच्चे पर तब होता है जब उसकी किसी बात से उसका अहित हो रहा हो पर पिता बच्चे को दूसरों का अहित करने के लिए दण्ड देता है.आपने देखा होगा माएं बच्चों को कंधे पर नहीं बैठाती हैं ,वो उन्हें गोद में सुरक्षित रखना चाहतीं हैं,जबकि पिता बच्चे को अपनी उंगली के बाद सीधा अपना कंधा देता है बैठने के लिए, बिना डरे की वो नीचे गिर जाएगा,वो ऐसा करता है ताकि बच्चा दुनियां को एक ऊंचाई से देख सके,वो देख सके कि जमीन से ऊपर होते ही ये दुनियां कैसे अलग दिखने लगती है,छोटी दिखने लगती है.ताकि बच्चे में ये समझ बने कि उसे अपनी जगह कहां और कैसे बनानी है.पिता उसे परियों की कहानी नहीं सुनाता,चोट लगने पर रोने नहीं देता.जबकि बच्चे के लिए पिता बचपन में टॉफियां लाने वाला इंसान और जवानी में उसकी आजादियों पर ताला लगाने वाला हैवान से अधिक कुछ नहीं.पिता चाहे तो इस छवि को तोड़ सकता है,पर वो ऐसा नहीं करता क्योंकि पिता चाहता है कि बच्चा मजबूत बने,इतना मजबूत की जब उसे घर से बाहर जाना हो तो वो हिचके ना,इतना मजबूत की जीवन के किसी भी कठिन फैसले को लेने से वो डरे ना,इतना मजबूत की जब एक दिन उसे अपने पिता की अर्थी को कंधा देना हो तो कमजोर ना पड़े,टूट ना जाए,बल्कि वो याद करे कैसे बचपन में पिता ने उसे अपना कंधा दिया था.......!

©Andy Mann #पिता  Arshad Siddiqui  Rakesh Srivastava  Ashutosh Mishra  अदनासा-  वैद्य (dr) उदयवीर सिंह
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Andy Mann

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