बादल बरसें अम्बर से और बरसे मन मेरा भी। जैसे मयूरा जंगल में नाचे नाचे मन मेरा भी। चित्त चोर सुहानी बरखा रानी चित्त चुराये मेरा भी। दामिनी चमके गगन में है चमकता हृदय मेरा भी। घनश्याम गरज कर कहते मानव बरसे मन मेरा भी। सजनी के काजल की रेखा चपला सी घनघोर बड़ी। बरखा की बूंदों सी कोमल है सजनी की बोली। दिल चुराये अगन लगाये बेला ये सावन की।। #अंकित सारस्वत# #बरखा और मैं