साँझ ढ़ले, पिछली कई रातों से, नैनों के दरिया से एकत्रित, आँसुओं के, ईंधन को सुलगाकर, वो बैठी थी..रसोई मे, अपने भाग्य की, रोटियां बनाने, वो गूँथ रही थी, परम्पराओं के श्मशान से मिली, अपने जैसी स्त्रियों की, और..अपनी पुरखिनों की, अस्थियों मे, पुरातात्विक वेदना का, जल मिलाके, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #लक्ष्मी_की_अस्थियां साँझ ढ़ले, पिछली कई रातों से, नैनों के दरिया से एकत्रित, आँसुओं के,