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​साँझ ढ़ले, ​पिछली कई रातों से, ​नैनों के दरिया से

​साँझ ढ़ले,
​पिछली कई रातों से,
​नैनों के दरिया से एकत्रित,
​आँसुओं के,
​ईंधन को सुलगाकर,
​वो बैठी थी..रसोई मे,
​अपने भाग्य की,
​रोटियां बनाने,
​
​वो गूँथ रही थी,
​परम्पराओं के श्मशान से मिली,
​अपने जैसी स्त्रियों की,
​और..अपनी पुरखिनों की,
​अस्थियों मे,
​पुरातात्विक वेदना का,
जल ​मिलाके, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#लक्ष्मी_की_अस्थियां

साँझ ढ़ले,
​पिछली कई रातों से,
​नैनों के दरिया से एकत्रित,
​आँसुओं के,
​साँझ ढ़ले,
​पिछली कई रातों से,
​नैनों के दरिया से एकत्रित,
​आँसुओं के,
​ईंधन को सुलगाकर,
​वो बैठी थी..रसोई मे,
​अपने भाग्य की,
​रोटियां बनाने,
​
​वो गूँथ रही थी,
​परम्पराओं के श्मशान से मिली,
​अपने जैसी स्त्रियों की,
​और..अपनी पुरखिनों की,
​अस्थियों मे,
​पुरातात्विक वेदना का,
जल ​मिलाके, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#लक्ष्मी_की_अस्थियां

साँझ ढ़ले,
​पिछली कई रातों से,
​नैनों के दरिया से एकत्रित,
​आँसुओं के,
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